दाग़ देहलवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का दाग़ देहलवी (page 8)
नाम | दाग़ देहलवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Dagh Dehlvi |
जन्म की तारीख | 1831 |
मौत की तिथि | 1905 |
जन्म स्थान | Delhi |
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा
क्या तर्ज़-ए-कलाम हो गई है
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
खुलता नहीं है राज़ हमारे बयान से
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
कौन सा ताइर-ए-गुम-गश्ता उसे याद आया
कहते हैं जिस को हूर वो इंसाँ तुम्हीं तो हो
काबे की है हवस कभी कू-ए-बुताँ की है
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
जल्वे मिरी निगाह में कौन-ओ-मकाँ के हैं
जब वो बुत हम-कलाम होता है
इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का
इस नहीं का कोई इलाज नहीं
इस अदा से वो जफ़ा करते हैं
इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा
इधर देख लेना उधर देख लेना
हुआ जब सामना उस ख़ूब-रू से
होश आते ही हसीनों को क़यामत आई
हाथ निकले अपने दोनों काम के
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
ग़ैर को मुँह लगा के देख लिया
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दिल-ए-नाकाम के हैं काम ख़राब
दिल परेशान हुआ जाता है
दिल मुब्तला-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार ही रहा
दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
दिल चुरा कर नज़र चुराई है