Sad Poetry of Dagh Dehlvi (page 2)

Sad Poetry of Dagh Dehlvi (page 2)
नामदाग़ देहलवी
अंग्रेज़ी नामDagh Dehlvi
जन्म की तारीख1831
मौत की तिथि1905
जन्म स्थानDelhi

उज़्र उन की ज़बान से निकला

उस के दर तक किसे रसाई है

उस से क्या ख़ाक हम-नशीं बनती

उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था

तेरी सूरत को देखता हूँ मैं

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना

शब-ए-वस्ल ज़िद में बसर हो गई

शब-ए-वस्ल भी लब पे आए गए हैं

साज़ ये कीना-साज़ क्या जानें

सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं

रंज की जब गुफ़्तुगू होने लगी

क़रीने से अजब आरास्ता क़ातिल की महफ़िल है

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

फिरे राह से वो यहाँ आते आते

फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर

निगाह-ए-शोख़ जब उस से लड़ी है

ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए

मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो

मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है

मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल

मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं

मोहब्बत का असर जाता कहाँ है

मिन्नतों से भी न वो हूर-शमाइल आया

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है

मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं

लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है

ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा

कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए

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