Love Poetry of Darshan Singh

Love Poetry of Darshan Singh
नामदर्शन सिंह
अंग्रेज़ी नामDarshan Singh

सुब्ह-ए-सादिक़

तलाश-ए-नूर

चारागर

ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो

वो सलीक़ा हमें जीने का सिखा दे साक़ी

तुझे क्या ख़बर मिरे हम-सफ़र मिरा मरहला कोई और है

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

रक़्स करती है फ़ज़ा वज्द में जाम आया है

राज़-ए-निहाँ थी ज़िंदगी राज़-ए-निहाँ है आज भी

क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से अहल-ए-जहाँ मफ़र नहीं

निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का सलाम आया तो क्या होगा

मोहब्बत की मता-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

लिबास-ए-फ़क़्र में हम को जो ख़ाकसार मिले

किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई

कहीं जमाल-ए-अज़ल हम को रूनुमा न मिला

कब ख़मोशी को मोहब्बत की ज़बाँ समझा था मैं

जज़्बा-ए-दिल को अमल में कभी लाओ तो सही

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

इश्क़ शबनम नहीं शरारा है

इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी

हँसी गुलों में सितारों में रौशनी न मिली

गुलों पे ख़ाक-ए-मेहन के सिवा कुछ और नहीं

ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने

दौलत मिली जहान की नाम-ओ-निशाँ मिले

चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं

बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर

आज दिल से दुआ करे कोई

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