मैं समझता हूँ मुझे दौलत-ए-कौनैन मिली
कौन कहता है कि वो कर गए बदनाम मुझे
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(980) Peoples Rate This
ग़म में इक मौज सरख़ुशी की है
गया था बज़्म-ए-मोहब्बत में ख़ाली जाम लिए
क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए
डर डर के जिसे मैं सुन रहा हूँ
मंज़िल न मिली तो ग़म नहीं है
देख कर जादा-ए-हस्ती पे सुबुक-गाम मुझे
कुछ मिरे शौक़ ने दर-पर्दा कहा हो जैसे
उन आँखों को नज़र क्या आ गया है
अक़्ल पहुँची जो रिवायात के काशाने तक
बुझीं शमएँ तो दिल जलाए हैं
वादी-ए-शब में उजालों का गुज़र हो कैसे
तेरा ही हो के जो रह जाऊँ तो फिर क्या होगा