ढलती है मौज मय की तरह रात इन दिनों
खिलती है सुब्ह गुल की तरह रंग-ओ-बू से पुर
वीराँ हैं जाम पास करो कुछ बहार का
दिल आरज़ू से पुर करो आँखें लहू से पुर
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
ग़म-ए-जहाँ हो रुख़-ए-यार हो कि दस्त-ए-अदू
आ गई फ़स्ल-ए-सुकूँ चाक-गरेबाँ वालो
लौह-ओ-क़लम
कोई आशिक़ किसी महबूबा से!
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
गाँव की सड़क
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले
नज़्म
मेरे मिलने वाले