इस दर्द का इलाज अजल के सिवा भी है
क्यूँ चारासाज़ तुझ को उम्मीद-ए-शिफ़ा भी है
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किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'
ना-मेहरबानियों का गिला तुम से क्या करें
मेरे जुनूँ को ज़ुल्फ़ के साए से दूर रख
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
रह जाए या बला से ये जान रह न जाए
शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई
दुनिया-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में किस का ज़ुहूर था
भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला
सूर-ओ-मंसूर-ओ-तूर अरे तौबा
शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं
इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है