क़द्रों की हदें तोड़ नई तरह निकाल
दम तुझ में अगर है तो बाग़ी हो जा
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अब फ़क़ीरी में कोई बात नहीं
फिर पहाड़ों से उतर कर आएँगे
वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है
मशवरा देने की कोशिश तो करो
जब भी तुम को सोचा है
और मैं चुप रहा
तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का
नई बासी कोई ख़बर दे दे
हिसार-ए-ख़ौफ़-ओ-हिरास में है बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ की बस्ती
भटक न जाता अगर ज़ात के बयाबाँ में
रंग ख़ाके में नया भर दूँगा मैं