ग़ुलाम हुसैन साजिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम हुसैन साजिद (page 2)

ग़ुलाम हुसैन साजिद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम हुसैन साजिद (page 2)
नामग़ुलाम हुसैन साजिद
अंग्रेज़ी नामGhulam Husain Sajid
जन्म की तारीख1951

इश्क़ की दस्तरस में कुछ भी नहीं

इस अँधेरे में चराग़-ए-ख़्वाब की ख़्वाहिश नहीं

हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं

हिकायत-ए-इश्क़ से भी दिल का इलाज मुमकिन नहीं कि अब भी

एक ख़्वाहिश है जो शायद उम्र भर पूरी न हो

ढूँड लाया हूँ ख़ुशी की छाँव जिस के वास्ते

अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना

आज खुला दुश्मन के पीछे दुश्मन थे

उफ़ुक़ से आग उतर आई है मिरे घर भी

सुब्ह तक जिन से बहुत बेज़ार हो जाता हूँ मैं

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए

नहीं है इस नींद के नगर में अभी किसी को दिमाग़ मेरा

नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को

नहीं आसाँ किसी के वास्ते तख़्मीना मेरा

मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

मता-ए-दीद तो क्या जानिए किस से इबारत है

मता-ए-बर्ग-ओ-समर वही है शबाहत-ए-रंग-ओ-बू वही है

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी

लरज़ जाता है थोड़ी देर को तार-ए-नफ़स मेरा

लहू की आग अगर जलती रहेगी

कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से

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