कहिए आईना-ए-सद-फ़स्ल-ए-बहाराँ तुझ को
कितने फूलों की महक है तिरे पैराहन में
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
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एक आँसू याद का टपका तो दरिया बन गया
आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में
बग़ैर सम्त के चलना भी काम आ ही गया
क्या बात है क्यूँ शहर में अब जी नहीं लगता
सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो
ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का
किन शहीदों के लहू के ये फ़रोज़ाँ हैं चराग़
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं
दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए
एक परछाईं तसव्वुर की मिरे साथ रहे
वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा