Ghazals of Habib Jalib (page 2)

Ghazals of Habib Jalib (page 2)
नामहबीब जालिब
अंग्रेज़ी नामHabib Jalib
जन्म की तारीख1929
मौत की तिथि1993
जन्म स्थानLahore

कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए

कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं

कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए

कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें

जीवन मुझ से मैं जीवन से शरमाता हूँ

झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शे'र सुनाने वाले

जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो

जब कोई कली सेहन-ए-गुलिस्ताँ में खिली है

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे

हम ने सुना था सहन-ए-चमन में कैफ़ के बादल छाए हैं

हम ने दिल से तुझे सदा माना

हम आवारा गाँव गाँव बस्ती बस्ती फिरने वाले

हुजूम देख के रस्ता नहीं बदलते हम

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या

ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी

'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा

'फ़ैज़' और 'फ़ैज़' का ग़म भूलने वाला है कहीं

इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है

दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा

दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो

दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो दिखाएँ किसी को क्या

दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

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