क़ाएम किया है मैं ने अदम के वजूद को
दुनिया समझ रही है फ़ना हो गया हूँ मैं
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मबादा फिर असीर-ए-दाम-ए-अक़्ल-ओ-होश हो जाऊँ
पार उतरा हूँ किस क़रीने से
है मुद्दआ-ए-इश्क़ ही दुनिया-ए-मुद्दआ
हाए कोई दवा करो हाए कोई दुआ करो
अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई
आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने
'हफ़ीज़' अहल-ए-ज़बाँ कब मानते थे
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'
जल्वा-ए-हुस्न को महरूम-ए-तमाशाई कर
हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
दिल लगाओ तो लगाओ दिल से दिल
दिन की सूरत नज़र आते ही मिरी रात हुई