लुत्फ़ आराम का तू क्या जाने
कभी ऐ वक़्त ठहर मेरे साथ
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ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
मुझ से जल्दी हार कर मेरा हरीफ़
चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं
ख़्वाब में तेरा आना-जाना पहले भी था आज भी है
बैठते जब हैं खिलौने वो बनाने के लिए
वो जो क़िस्से में था शामिल वही कहता है मुझे
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी
तेरी बीनाई किसी दिन छीन लेगा देखना
ये तजरबा हुआ है मोहब्बत की राह में