Bewafa Poetry (page 38)
गो सुध नहीं उस शोख़ सितमगर ने सँभाली
आफ़ताब शाह आलम सानी
मैं सोचता हूँ अगर इस तरफ़ वो आ जाता
आफ़ताब हुसैन
कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं
अफ़सर इलाहाबादी
फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता
अफ़सर इलाहाबादी
उस ने क्यूँ सब से जुदा मेरी पज़ीराई की
अफ़ीफ़ सिराज
एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया
आदिल मंसूरी
शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में
अदीम हाशमी
लोगों के दर्द अपनी पशेमानियाँ मिलीं
अदीम हाशमी
इक खिलौना टूट जाएगा नया मिल जाएगा
अदीम हाशमी
आग़ोश-ए-सितम में ही छुपा ले कोई आ कर
अदीम हाशमी
मिरे शौक़-ए-जुस्तुजू का किसे ए'तिबार होता
अदीब सहारनपुरी
वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है
अदा जाफ़री
तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है
अदा जाफ़री
बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़
अदा जाफ़री
नई सुब्ह चाहते हैं नई शाम चाहते हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
हर एहतिमाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
नुमू तो पहले भी था इज़्तिराब मैं ने दिया
अबुल हसनात हक़्क़ी
अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती
अबु मोहम्मद वासिल
ज़मीर-ए-नौ-ए-इंसानी के दिन हैं
अबु मोहम्मद सहर
सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए
अबु मोहम्मद सहर
फूलों की तलब में थोड़ा सा आज़ार नहीं तो कुछ भी नहीं
अबु मोहम्मद सहर
बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं
अबु मोहम्मद सहर
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
आबरू शाह मुबारक
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
आबरू शाह मुबारक
कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
आबरू शाह मुबारक
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
आबरू शाह मुबारक
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे
आबरू शाह मुबारक
चंचलाहट में तू ममोला है
आबरू शाह मुबारक
उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था
अबरार आज़मी
हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम
अब्र अहसनी गनौरी