Bewafa Poetry (page 36)
सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं
अहमद फ़राज़
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद फ़राज़
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
अहमद फ़राज़
किसी बेवफ़ा की ख़ातिर ये जुनूँ 'फ़राज़' कब तक
अहमद फ़राज़
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
अहमद फ़राज़
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
अहमद फ़राज़
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
अहमद फ़राज़
तो बेहतर है यही
अहमद फ़राज़
मुहासरा
अहमद फ़राज़
काली दीवार
अहमद फ़राज़
दोस्ती का हाथ
अहमद फ़राज़
ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ
अहमद फ़राज़
ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं
अहमद फ़राज़
ये आलम शौक़ का देखा न जाए
अहमद फ़राज़
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
अहमद फ़राज़
तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही
अहमद फ़राज़
तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ
अहमद फ़राज़
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
अहमद फ़राज़
तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को
अहमद फ़राज़
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ
अहमद फ़राज़
सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी
अहमद फ़राज़
सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए
अहमद फ़राज़
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
अहमद फ़राज़
पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे
अहमद फ़राज़
न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे
अहमद फ़राज़
न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
अहमद फ़राज़
जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
अहमद फ़राज़
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
अहमद फ़राज़
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
अहमद फ़राज़