Bewafa Poetry (page 34)
बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा
अकबर हैदराबादी
ये सितम इक ख़्वाहिश-ए-मौहूम पर
अकबर हैदरी
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
अकबर इलाहाबादी
कुछ तर्ज़-ए-सितम भी है कुछ अंदाज़-ए-वफ़ा भी
अकबर इलाहाबादी
बुत-कदे में शोर है 'अकबर' मुसलमाँ हो गया
अकबर इलाहाबादी
वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे
अकबर इलाहाबादी
कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है
अकबर इलाहाबादी
जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है
अकबर इलाहाबादी
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
आज आराइ-ए-शगेसू-ए-दोता होती है
अकबर इलाहाबादी
ये शौक़ सारे यक़ीन-ओ-गुमाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह
आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
अब आप ख़ुद ही बताएँ ये ज़िंदगी क्या है
अजमल सिराज
शाम अपनी बे-मज़ा जाती है रोज़
अजमल सिराज
हम अपने-आप में रहते हैं दम में दम जैसे
अजमल सिराज
ये ही हैं दिन, बाग़ी अगर बनना है बन
अजमल सिद्दीक़ी
इतना करम इतनी अता फिर हो न हो
अजमल सिद्दीक़ी
'अजमल' न आप सा भी कोई सख़्त-जाँ मिला
अजमल अजमली
याद-ए-फ़िराक-ए-यार तिरा शुक्रिया बहुत
अजमल अजमली
आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है
अजमल अजमली
सितम ये है वो कभी भूल कर नहीं आया
आजिज़ मातवी
जहाँ न दिल को सुकून है न है क़रार मुझे
आजिज़ मातवी
बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ
अजय सहाब
मेरा शिकवा तिरी महफ़िल में अदू करते हैं
ऐश देहलवी
जिस दिल में तिरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं होता
ऐश देहलवी
मैं हँस रहा था गरचे मिरे दिल में दर्द था
ऐश बर्नी
मैं अपना कार-ए-वफ़ा आज़माऊँगा फिर भी
ऐन ताबिश
ज़मीन अपने बेटों को पहचानती है
ऐन ताबिश
गुज़रते वक़्त को बुनियाद करने वाला हूँ
ऐन ताबिश
शहर
ऐन रशीद