Friendship Poetry (page 95)
नुमायाँ जब वो अपने ज़ेहन की तस्वीर करता है
अबरार किरतपुरी
मेरे पास क्या कुछ नहीं
अबरार अहमद
ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू
अबरार अहमद
तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी
अबरार अहमद
हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम
अब्र अहसनी गनौरी
ये आज कौन सी तक़्सीर हो गई 'नामी'
आबिद नामी
न जाने रब्त-ए-मसर्रत है किस क़दर ग़म से
आबिद नामी
आप करिश्मा-साज़ हुए हैं होश में है दीवाना भी
आबिद नामी
सिर्फ़ कर्ब-ए-अना दिया है मुझे
आबिद मुनावरी
चाँद से अपनी यारी थी
आबिद मुनावरी
बे-तमन्ना हूँ ख़स्ता-जान हूँ मैं
आबिद मुनावरी
शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है
आबिद मलिक
आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में
आबिद मलिक
मक़ाम अपना दुनिया में ज़ीशान रख
आबिद काज़मी
शिकस्त
आबिद आलमी
ताज़ा-दम जवानी रख
अब्दुस्समद ’तपिश’
हक़ मिरा मुझ को मिरे यार नहीं देते हैं
अब्दुश्शुकूर आसी
रोज़ वहशत कोई नई मिरे दोस्त
अब्दुर्राहमान वासिफ़
दिल में लिए औहाम को इस घर से उठा मैं
अब्दुर्राहमान वासिफ़
पड़े हैं मस्त भी साक़ी अयाग़ के नज़दीक
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
न पहुँचे छूट कर कुंज-ए-क़फ़स से हम नशेमन तक
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
मिज़्गाँ ने रोका आँखों में दम इंतिज़ार से
अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी
रूठे हैं हम से दोस्त हमारे कहाँ कहाँ
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
रूह को क़ालिब के अंदर जानना मुश्किल हुआ
अब्दुल्लाह जावेद
मैं तेरी ही आवाज़ हूँ और गूँज रहा हूँ
अब्दुल्लाह जावेद
हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
अब्दुल्लाह जावेद
हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना
अब्दुल्लाह जावेद
इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त
अब्दुल्लाह जावेद
सुनाया यार नीं आ कर दो तारा
अब्दुल वहाब यकरू
मुझ सीं और दिलरुबा सीं है अन-बन
अब्दुल वहाब यकरू