कोई भरोसा नहीं अब्र के बरसने का
बढ़ेगी प्यास की शिद्दत न आसमाँ देखो
Wasi Shah
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Allama Iqbal
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चले गए तो पुकारेगी हर सदा हम को
बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में
दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया
ख़ुद अपने आप से लेना था इंतिक़ाम मुझे
अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं
तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे
दुनिया बहुत क़रीब से उठ कर चली गई
नहीं है तुम में सलीक़ा जो घर बनाने का
ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है
थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी
गुलशन में ले के चल किसी सहरा में ले के चल
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे