कोई तो होगा जिस को मिरा इंतिज़ार है
कहता है दिल के शहर-ए-तमन्ना में ले के चल
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अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं
तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे
थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी
मुझे न देखो मिरे जिस्म का धुआँ देखो
बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा
बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे
न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा
मैं कब रहीन-ए-रेग-ए-बयाबान-ए-यास था
ज़िंदगी वादी ओ सहरा का सफ़र है क्यूँ है