कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
ऊँट
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
छोटे काम का बड़ा नतीजा