ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
दुनिया का न खा फ़रेब वीराँ है ये
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
क़ौस-ए-क़ुज़ह
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद