पन चक्की
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
हर ख़्वाहिश-ओ-अर्ज़-ओ-इल्तिजा से तौबा
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम