मुलम्मा की अँगूठी
दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
पन चक्की
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
हवा और सूरज का मुक़ाबला
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
चिड़िया के बच्चे
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
एक वक़्त में एक काम
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश