दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
नक़्क़ाश से मुमकिन है कि हो नक़्श ख़िलाफ़
दाल की फ़रियाद
कछवा और ख़रगोश
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-महमूद
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ