देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
क़ौस-ए-क़ुज़ह
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
नसीहत
दाल की फ़रियाद
अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
ऊँट