बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
हवा और सूरज का मुक़ाबला
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
छोटे काम का बड़ा नतीजा
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे