थोड़ा थोड़ा मिल कर बहुत हो जाता है
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
हवा और सूरज का मुक़ाबला
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र
ऊँट
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है