अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-महमूद
दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल
गर्मी का मौसम
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
छोटे काम का बड़ा नतीजा
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
कछवा और ख़रगोश