थोड़ा थोड़ा मिल कर बहुत हो जाता है
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
एक पौदा और घास
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
गर्मी का मौसम
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी