अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
दाल की फ़रियाद
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
कछवा और ख़रगोश
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
ऊँट
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ