इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर
अपने आईना-ए-तमन्ना में
एक कम-सिन हसीन लड़की का
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
चंद लम्हों को तेरे आने से
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
हाए ये तेरे हिज्र का आलम