इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
रात जब भीग के लहराती है
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
एक कम-सिन हसीन लड़की का
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
उफ़ ये उम्मीद-ओ-बीम का आलम
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
दोस्त! तुझ से अगर ख़फ़ा हूँ तो क्या