रात जब भीग के लहराती है
चाँदनी ओस में बस जाती है
अपनी हर साँस से मुझ को 'अख़्तर'
उन के होंटों की महक आती है
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यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
कितनी मासूम हैं तिरी आँखें
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
एक कम-सिन हसीन लड़की का
चंद लम्हों को तेरे आने से