यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
अब्र में छुप गया है आधा चाँद
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
एक कम-सिन हसीन लड़की का
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा