जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
शर्म दहशत झिझक परेशानी
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
साल-हा-साल और इक लम्हा
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त