मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बरसात है दिल डस रहा है पानी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर