ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
फिर किसी बात का ख़याल आया
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को