दिन ये बदलेगा रात बदलेगी
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
एक मुद्दत सितम उठाने पर
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
फिर किसी बात का ख़याल आया
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर