जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
आरज़ू है कि अब मिरी हस्ती
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
एक मुद्दत सितम उठाने पर
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ