कोह-ओ-सहरा भी कर न जाए बाश
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
यही दर्द-ए-जुदाई है जो इस शब
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
इतने भी हम ख़राब न होते रहते
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे