मिर्ज़ा अज़फ़री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मिर्ज़ा अज़फ़री (page 2)

मिर्ज़ा अज़फ़री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मिर्ज़ा अज़फ़री (page 2)
नाममिर्ज़ा अज़फ़री
अंग्रेज़ी नामMirza Azfari

तू आशिक़ों के तईं जब से क़त्ल-ए-नाज़ किया

तिरी तेग़ अबरू की टुक सामने कर देखें तो

सोज़-ए-शम्-ए-हिज्र से शब जल गए

सोच में तेरे सुना रात जो खटका-पटका

सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ

शिताबी अपने दीवाने को कर बंद

समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ

नम-ए-अश्क आँखों से ढलने लगा है

मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की

किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर

ख़िज़ाँ तन्हा न सैर-ए-बोस्ताँ को जा बिगाड़ आई

कहा किस ने कि तुम ये वो न बोलो

जी में क्या क्या मिरी उमाहा था

जबकि ग़ुस्से के बीच आते हो

जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी

जान आ बर में कि फिर कुछ ग़म-ओ-वसवास नहीं

इस की सूरत को देख कर भूले

हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे

हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर

गिरह जो काम में डाले है पंजा-ए-तक़दीर

ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक

ग़ैरों के साथ गाते जाते हो

एक बर्छी से मार जाते हो

दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले

ढोलकी धम-धमी ख़ंजरी भी बजानी जानी

देख अपने माइलों को कि हैं दिल जले पड़े

भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ

बारकल्लाह मैं तिरे हुस्न की क्या बात कहूँ

आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले

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