मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए
शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता
कोई उम्मीद बर नहीं आती
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है