बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'
बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो 'असद'
क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
कब वो सुनता है कहानी मेरी
क्यूँ न हो चश्म-ए-बुताँ महव-ए-तग़ाफ़ुल क्यूँ न हो
ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब-ए-बरहनगी
मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब'