हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते
या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे
हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद'
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था