Ghazals of Mirza Maseeta Beg Muntahi
नाम | मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Maseeta Beg Muntahi |
ये जिस ने जान दी है नान देगा
याद है रोज़-ए-अज़ल उस ने कहा क्या क्या कुछ
सुब्ह-दम उठ कर तिरा पहलू से जाना याद है
सर-सर गेसू हिला रही है
रह गए अश्कों में लख़्त-ए-जिगर आते आते
क़ातिल-ए-आलम से क्या याराना है
नफ़्स-ए-सग-ए-पलीद को गर अपने मारिए
मुमकिन मुझे जो हो बे-रिया हो
मुब्तला ये दिल हुआ जब यार नंगा हो गया
मीठी है ऐसी बात उस की
मंसूर पीते ही मय-ए-उल्फ़त बहक गया
करते हैं चैन बैठे हुस्न-ओ-जमाल वाले
कली जो गुल की चटक रही है तबीअ'त अपनी खटक रही है
जवानी की हालत गुज़र जाएगी
जौर-ए-अफ़्लाक बस-कि झेले हैं
जान दी उन पे मर-मिटे सिसके
हुस्न की दिल में मिरे जल्वागरी रहती है
हमेशा सैर-ए-गुल-ओ-लाला-ज़ार बाक़ी है
फ़ुग़ान-ओ-आह से पैदा किया दर्द-ए-जुदाई को
फ़ुग़ान-ओ-आह है हर-दम पुकार रखता है
दुनिया में यही चोर बनाता है असस को
दर पे उस शोख़ के जब जा बैठा
दैर-ओ-हरम को छोड़ के ऐ दिल चल बैठो मयख़ाने में
बज़्म-ए-आलम में बहुत से हम ने मारे हाथ-पाँव
आप आए थे याँ जफ़ा के लिए