और मैं ने ख़ुदा से कहा
देख तेरी मख़्लूक़
चौथे आसमान पर आ गई है
तो पर्दा-ए-ग़ैब से आवाज़ आई
''कुन''
और पलक झपकते में
सात और आसमान
चौथे आसमान पर फैल गए!
और मेरे अंदर
इक और जंगल उग आया!!
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एक शाम बाग़ में
अचानक तिरी याद का सिलसिला
सर्दी में दिन सर्द मिला
नहा कर भीगे बालों को सुखाती
अभी तो और भी दिन बारिशों के आने थे
यूँही हम पर सब के एहसाँ हैं बहुत
मछली की बू
कल रात जगमगाता हुआ चाँद देख कर
ख़ुदा कहाँ है
यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
इधर रहा हूँ उधर रहा हूँ
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू