न मस्जिदों में न मंदिरों में
ख़ुदा कहाँ है किधर गया है
चलो मिरे साथ मैं बताऊँ
मगर समय अब गुज़र गया है
जलाए हैं हम ने इन घरों में
ख़ुदा भी जल बुझ के मर गया है
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दिन इक के बा'द एक गुज़रते हुए भी देख
कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
इक तस्वीर तजरीदी
'अल्वी' ख़्वाहिश भी थी बाँझ
सब नमाज़ें बाँध कर ले जाऊँगा मैं अपने साथ
जल मरने से पहले
दरवाज़े पर पहरा देने
बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी
हर इक झोंका नुकीला हो गया है
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
मौत भी दूर बहुत दूर कहीं फिरती है
लड़की अच्छी है 'अल्वी'