दिन भर बच्चों ने मिल कर पत्थर फेंके फल तोड़े
साँझ हुई तो पंछी मिल कर रोने लगे दरख़्तों पर
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
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यूँ तो कम कम थी मोहब्बत उस की
ऐसा हंगामा न था जंगल में
मुँह-ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे
शिकस्त
सदियों से किनारे पे खड़ा सूख रहा है
आँख में दहशत न थी हाथ में ख़ंजर न था
रखते हो अगर आँख तो बाहर से न देखो
सामने दीवार पर कुछ दाग़ थे
लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे
रात के मुँह पर उजाला चाहिए
अचानक तिरी याद का सिलसिला
धूप ने गुज़ारिश की