घर में क्या आया कि मुझ को
दीवारों ने घेर लिया है
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कोई मौसम हो भले लगते थे
सच है कि वो बुरा था हर इक से लड़ा किया
अब जिधर भी जाते हैं
ज़मीं कहीं भी न थी चार-सू समुंदर था
मैं नाहक़ दिन काट रहा हूँ
कभी तो ऐसा भी हो राह भूल जाऊँ मैं
ऐसा हुआ नहीं है पर ऐसा न हो कहीं
कितना मुश्किल है ज़िंदगी करना
दुख का एहसास न मारा जाए
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
अब के बरसात में पानी आए
उस से बिछड़ते वक़्त मैं रोया था ख़ूब-सा