दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी
तू ऐ रक़ीब दरपय-ए-आज़ार है अबस
Jaun Eliya
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(406) Peoples Rate This
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
ख़त-नवेसी ये है तो मुश्ताक़ो
वो मेरा दर्द-ए-दिल क्या जानते हैं
तेग़-ए-पुर-ख़ूँ वो अगर धोए कनार-ए-दरिया
किसी के मैं लिबास-ए-आरियत को क्या समझता हूँ
ये कौन सा परवाना मुआ जल के लगन में
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
हर कोई उस का ख़रीदार हुआ चाहता है
निगाह-ए-यार हम से आज बे-तक़सीर फिरती है
वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता
न पूछ हिज्र में जो कुछ हुआ हमारा हाल
क्यूँकर ये तुफ़-ए-अश्क से मिज़्गाँ में लगी आग