वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता
नामा न कोई बाँध दे सूरज की किरन में
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न पूछ हिज्र में जो कुछ हुआ हमारा हाल
बरसों ख़याल-ए-यार रहा कुछ खिचा खिचा
अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को
तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ
निगाह-ए-यार हम से आज बे-तक़सीर फिरती है
हर उ'ज़्व-ए-बदन एक से है एक तिरा ख़ूब
सताना क़त्ल करना फिर जलाना
जलवा-ए-बर्क़-ए-कम-नुमा हैं हम
सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला
जी में आता है मय-कशी कीजे
वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह
मर्तबा माशूक़ का आशिक़ से बाला-दस्त है